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इ॒मं दे॑वाऽअसप॒त्नꣳ सु॑वध्वं मह॒ते क्ष॒त्रा॑य मह॒ते ज्यैष्ठ्या॑य मह॒ते जान॑राज्या॒येन्द्र॑स्येन्द्रि॒याय॑। इ॒मम॒मुष्य॑ पु॒त्रम॒मुष्यै॑ पु॒त्रम॒स्यै वि॒शऽए॒ष वो॑ऽमी॒ राजा॒ सोमो॒ऽस्माकं॑ ब्राह्म॒णाना॒ राजा॑ ॥१८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मम्। दे॒वाः॒। अ॒स॒प॒त्नम्। सु॒व॒ध्व॒म्। म॒ह॒ते। क्ष॒त्राय॑। म॒ह॒ते। ज्यैष्ठ्या॑य। म॒ह॒ते। जान॑राज्या॒येति॒ जान॑ऽराज्याय। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒याय॑। इ॒मम्। अ॒मुष्य॑। पु॒त्रम्। अ॒मुष्यै॑। पु॒त्रम्। अ॒स्यै। वि॒शे। ए॒षः। वः॒। अ॒मी॒ऽइत्य॑मी। राजा॑। सोमः॑। अ॒स्माक॑म्। ब्रा॒ह्म॒णाना॑म्। राजा॑ ॥१८॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सत्य के उपदेशक विद्वानों को चाहिये कि बाल्यावस्था से लेके अच्छी शिक्षा से राजाओं की कन्या और पुत्रों को श्रेष्ठ आचारयुक्त करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) वेद शास्त्रों को जाननेहारे सेनापति लोगो ! आप जो (एषः) यह उपदेशक वा सेनापति (वः) तुम्हारा और (अस्माकम्) हमारा (ब्राह्मणानाम्) ईश्वर और वेद के सेवक ब्राह्मणों का (राजा) वेद और ईश्वर की उपासना से प्रकाशमान अधिष्ठाता है, जो (अमी) वे धर्मात्मा राजपुरुष हैं, उनका (सोमः) शुभ गुणों से प्रसिद्ध (राजा) सर्वत्र विद्या, धर्म और अच्छी शिक्षा का करनेहारा है, उस (इमम्) इस (अमुष्य) श्रेष्ठगुणों से युक्त राजपूत के (पुत्रम्) पुत्र को (अमुष्यै) प्रशंसा करने योग्य राजकन्या के (पुत्रम्) पवित्र गुण, कर्म और स्वभाव से माता-पिता की रक्षा करनेवाले पुत्र और (अस्यै) अच्छी शिक्षा करने योग्य इस वर्त्तमान (विशे) प्रजा के लिये तथा (महते) सत्कार करने योग्य (क्षत्राय) क्षत्रिय कुल के लिये (महते) बड़े (ज्यैष्ठ्याय) विद्या और धर्म विषय में श्रेष्ठ पुरुषों के होने के लिये (महते) श्रेष्ठ (जानराज्याय) माण्डलिक राजाओं के ऊपर बलवान् समर्थ होने के लिये (इन्द्रस्य) सब ऐश्वर्य्यों से युक्त धनाढ्य के (इन्द्रियाय) धन बढ़ाने के लिये (असपत्नम्) जिसका कोई शत्रु न हो, ऐसे पुत्र को (सुवध्वम्) उत्पन्न करो ॥१८॥
भावार्थभाषाः - जो उपदेशक और राजपुरुष सब प्रजा की उन्नति किया चाहें तो प्रजा के मनुष्य राजा और राजपुरुषों की उन्नति करने की इच्छा क्यों न करें। जो राजपुरुष और प्रजापुरुष वेद और ईश्वर की आज्ञा को छोड़ के अपनी इच्छा के अनुकूल प्रवृत्त होवें, तो इनकी उन्नति का विनाश क्यों न हो ॥१८॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सत्योपदेशकैर्विद्वद्भिर्बाल्याऽवस्थामारभ्य सुशिक्षया सर्वे राजकन्याकुमाराः श्रेष्ठाचाराः संपादनीया इत्याह ॥

अन्वय:

(इमम्) (देवाः) वेदशास्त्रविदः सेनापतयः (असपत्नम्) अजातशत्रुम् (सुवध्वम्) प्रेर्ध्वम् (महते) सत्कर्त्तव्याय (क्षत्राय) क्षत्रियकुलाय (महते) (ज्यैष्ठ्याय) विद्याधर्मवृद्धानां भावाय (महते) (जानराज्याय) जनानां राज्ञां माण्डलिकानामुपरि प्रभवाय (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्तस्य धनिकस्य (इन्द्रियाय) धनवर्धनाय (इमम्) (अमुष्य) सद्गुणसम्पन्नस्य राजपूतस्य (पुत्रम्) तनयम् (अमुष्यै) प्रशंसनीयाया राजपुत्र्याः, अत्र षष्ठ्यर्थे चतुर्थी (पुत्रम्) पवित्रगुणकर्मस्वभावैर्मातापितृपालकम् (अस्यै) वर्त्तमानायाः सुशिक्षितव्यायाः (विशे) प्रजायाः (एषः) (वः) युष्माकं पालनाय (अमी) धार्मिका राजपुरुषाः (राजा) सर्वत्रविद्याधर्मसुशिक्षाप्रकाशकः (सोमः) शुभगुणैः प्रसिद्धः (अस्माकम्) (ब्राह्मणानाम्) ब्रह्मवेदभक्तानाम् (राजा) वेदेश्वरोपासनया प्रकाशमानः ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.३.३.१२ तथा ५.४.२.३) व्याख्यातः ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! यूयं य एष उपदेशकः सेनेशो वा वोऽस्माकं च ब्राह्मणानां राजाऽस्ति। येऽमी राजपुरुषाः सन्ति, तेषां सोमो राजाऽस्ति तमिमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विशे महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियायासपत्नं सुवध्वम् ॥१८॥
भावार्थभाषाः - यद्युपदेशका राजपुरुषाश्च सर्वस्योन्नतिं चिकीर्षेयुस्तर्हि प्रजाराजजना राजपुरुषोन्नतिं कुतो न कर्त्तुमिच्छेयुः। यदि राजप्रजाजना वेदेश्वराज्ञां विहाय स्वेच्छया प्रवर्त्तेरन् तर्ह्येषामनुन्नतिः कुतो न भवेत् ॥१८॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजपुरुष व उपदेशक प्रजेची उन्नती करू इच्छितात त्यांच्या उन्नतीची इच्छा प्रजा का बरे बाळगणार नाही? राजपुरुष व प्रजापुरुष जर वेद व ईश्वर यांची आज्ञा सोडून किंवा त्यांची अवहेलना करून आपल्या इच्छेप्रमाणे वर्तन करतील तर त्यांचा नाश का बरे होणार नाही?